सुप्रीम कोर्ट ने महिला खतना प्रथा पर मांगा जवाब

महिला खतना, FGM, खफद, दाऊदी बोहरा समुदाय, सुप्रीम कोर्ट, जनहित याचिका, चेतना वेलफेयर सोसाइटी, मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 21, शारीरिक स्वायत्तता, निजता का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 26, WHO, मानवाधिकार उल्लंघन, POCSO अधिनियम, BNS धारा 113, BNS धारा 118, मुस्लिम पर्सनल लॉ, क्लाइटोरल हुड, बाल अधिकार, असंवैधानिक प्रथा, सामाजिक न्याय, संवैधानिक संरक्षण, तलाक-ए-हसन, महिला अधिकार, न्यायिक हस्तक्षेप,

दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर. महादेवन की पीठ ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित महिला जननांग विकृति (FGM) को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया है। चेतना वेलफेयर सोसाइटी द्वारा दायर याचिका में इसे नाबालिग लड़कियों के मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताते हुए इस कुप्रथा पर रोक लगाने और स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने की मांग की गई है।

याचिका के अनुसार ‘खतना’ या ‘खफद’ में लगभग सात वर्ष की उम्र की लड़कियों के क्लाइटोरल हुड का एक हिस्सा काटा जाता है, जिसे यौन इच्छा नियंत्रित करने से जोड़ा जाता है। याचिकाकर्ता ने बताया कि यह प्रथा बोहरा समुदाय में सदियों से चली आ रही है, जबकि कुरान में इसका कोई उल्लेख नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार यह न केवल महिलाओं के अधिकारों, बल्कि बाल अधिकारों का भी गंभीर मुद्दा है।

याचिका में FGM को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन बताया गया है, क्योंकि यह समानता, स्वतंत्रता और शारीरिक स्वायत्तता के अधिकारों का हनन करती है। याचिकाकर्ता ने केएस पुट्टास्वामी मामले का हवाला देते हुए कहा कि निजता और शारीरिक अखंडता मौलिक अधिकार हैं, जिन्हें इस गैर-सहमतिपूर्ण प्रक्रिया से क्षति पहुँचती है।

धार्मिक स्वतंत्रता के सवाल पर याचिका में तर्क दिया गया कि अनुच्छेद 25 और 26 का संरक्षण उन प्रथाओं तक नहीं बढ़ाया जा सकता जो हानिकारक हों या महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण हों। WHO ने भी FGM को मानवाधिकार उल्लंघन बताया है।

भारत में इस प्रथा पर कोई विशेष कानून नहीं है, हालांकि यह BNS की धारा 113, 118 और POCSO अधिनियम के तहत दंडनीय है। याचिका में कहा गया है कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में यह प्रथा प्रतिबंधित है, लेकिन भारत में इसके खिलाफ समर्पित कानून का अभाव इसे जारी रहने देता है। सुप्रीम कोर्ट तलाक-ए-हसन जैसे मामलों में भी हस्तक्षेप के संकेत दे चुका है, जिससे उम्मीद है कि FGM पर भी सख्त रुख अपनाया जा सकता है।

Share This News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *