मध्य प्रदेश ओबीसी आरक्षण विवाद: प्रभु श्रीराम अपमान का आरोप निराधार, सरकार ने दी सफाई

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भोपाल। मध्य प्रदेश में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के मामले को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत हलफनामे के कुछ अंशों को लेकर विवाद खड़ा हो गया। इंटरनेट मीडिया पर इन अंशों के आधार पर प्रदेश की भाजपा सरकार पर भगवान राम और आचार्य द्रोणाचार्य का अपमान करने के आरोप लगाए जा रहे हैं।

सोशल मीडिया में प्रसारित सामग्री में कहा गया कि छोटे जाति के व्यक्ति द्वारा श्रेष्ठ कार्य करना धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ माना गया। इसमें ऋषि शम्बूक वध और एकलव्य को शिक्षा न देने के उदाहरण का हवाला दिया गया। यह दिखाया गया कि छोटे जाति के योग्य व्यक्तियों को विद्या और अवसरों से वंचित रखा गया।

हालांकि, प्रदेश सरकार ने इस विवाद पर साफ किया कि इंटरनेट मीडिया में प्रसारित अंश सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत हलफनामे का हिस्सा नहीं हैं। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा कि यह महाजन आयोग की 1983 की रिपोर्ट से लिए गए अंश हैं और वर्तमान सरकार की नीति या हलफनामे का हिस्सा नहीं हैं। उन्होंने दुष्प्रचार फैलाने वाले तत्वों पर भी निशाना साधा।

मध्य प्रदेश में वर्तमान में सरकारी नौकरियों में कुल 63 प्रतिशत आरक्षण है। इसमें अनुसूचित जातियों को 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों को 16 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। पूर्व कमल नाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था, जिससे कुल आरक्षण 63 प्रतिशत हो गया, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है। इसके अलावा, भारत सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया है।

सरकार ने सभी आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि ओबीसी आरक्षण और हलफनामे का मकसद केवल न्यायसंगत अवसर और सामाजिक समानता सुनिश्चित करना है।

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