रायपुर। राजधानी समेत छत्तीसगढ़ में कई प्ले स्कूल अपनी मर्जी के मालिक बनकर चल रहे हैं। निजी स्कूलों की फीस नियंत्रित करने के लिए छत्तीसगढ़ निजी विद्यालय शुल्क विनियमन अधिनियम 2020 लागू है, लेकिन यह नियम प्ले स्कूलों पर लागू नहीं है। इसी वजह से कुछ स्कूलों की फीस इंजीनियरिंग, बीएड, फार्मेसी जैसे कोर्स से भी अधिक वसूली जा रही है।
शिक्षा विभाग से मान्यता न लेने वाले ये स्कूल गली-मोहल्लों से लेकर भव्य इमारतों में संचालित हैं। इससे पैरेंट्स परेशान हैं, लेकिन नियम न होने के कारण किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा रही है। पड़ताल में पता चला कि प्री-प्राइमरी यानी नर्सरी, पीपी-1 और पीपी-2 की फीस 50 हजार से सवा लाख रुपए तक है। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि जहां स्कूल नर्सरी से 10वीं या 12वीं तक संचालित हैं, वहां समस्या नहीं है।
छत्तीसगढ़ प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने कहा कि प्ले स्कूल के लिए राज्य में नियम बनाना जरूरी है। मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में प्ले स्कूल के संचालन के लिए नियम हैं, लेकिन वहां यह महिला बाल विकास विभाग के अंतर्गत आता है। यहां भी ऐसी व्यवस्था की जरूरत है।
इसके अलावा, आरटीई (शिक्षा का अधिकार) का नियम 6 से 14 साल के बच्चों पर लागू होता है। प्री-प्राइमरी स्कूलों में उम्र छह साल से कम होने के कारण ये नियम प्ले स्कूलों पर लागू नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि सत्र 2024-25 में प्री-प्राइमरी की फीस कई उच्च शिक्षा कोर्स से अधिक रही। जैसे बी.फार्मेसी की फीस 70-80 हजार, डी.फार्मेसी 60-65 हजार, बीएससी नर्सिंग 55-59 हजार, बीएड 60-65 हजार, बीई 70-80 हजार प्रतिवर्ष। इस स्थिति से स्पष्ट है कि प्ले स्कूल संचालन और फीस के लिए राज्य स्तर पर कानूनी ढांचा और नियम बनाने की सख्त आवश्यकता है।