रायपुर। प्रदेश में धान की सरकारी खरीदी शुरू होने से ठीक पहले जिला सहकारी बैंक में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। पिछले पांच साल से वेतनवृद्धि और महंगाई भत्ते की मांग कर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों ने केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह तक शिकायत पहुंचाई है। मंत्रालय ने इस पर उचित पहल का भरोसा दिया है।
कर्मचारियों का आरोप है कि उन्हें जानबूझकर वेतनवृद्धि और महंगाई भत्ते से वंचित रखा गया। यह बकाया रकम अब 25 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। राज्य में धान खरीदी 15 नवंबर से शुरू होगी, और किसानों को धान की रकम, पीडीएस संचालन, खाद-बीज वितरण और पीएम किसान सम्मान निधि का भुगतान जिला सहकारी बैंकों के माध्यम से किया जाता है।
मामला शुरू हुआ था, जब पांच साल पहले पंजीयक, सहकारी संस्था ने स्टाफ को वेतनवृद्धि देने पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट की सिंगल और डबल बेंच ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जो अभी लंबित है। अधिकारीयों के अनुसार, बकाया भुगतान करने से सरकार पर कोई अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा।
तत्कालीन सहकारिता पंजीयक और बैंक अध्यक्ष धनंजय देवांगन ने 2012 में वेतनमान संशोधन आदेश जारी किया था। इसमें 6 जनवरी 2020 के पुराने आदेश के प्रतिबंधात्मक बिंदु लागू किए गए। यदि किसी जिला सहकारी बैंक का स्थापना व्यय उसकी सकल आय का 15% या कार्यशील पूंजी का 1.5% से अधिक होता, तो वेतनवृद्धि स्वतः रोक दी जाती। इसी शर्त के कारण पिछले पांच साल से राज्य के सभी जिला सहकारी बैंकों में वेतनवृद्धि और महंगाई भत्ता नहीं दिया गया।
बकाया राशि का विवरण:
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वर्ग-1 अधिकारी व शाखा प्रबंधक (50 कर्मी): 5 लाख प्रति कर्मी
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लेखापाल (120 कर्मी): 4 लाख प्रति कर्मी
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लिपिक व समिति प्रबंधक (400 कर्मी): 3 लाख प्रति कर्मी
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भृत्य व सफाई कर्मचारी (180 कर्मी): 2 लाख प्रति कर्मी
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सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए: 2 करोड़
कुलदीप शर्मा, सहकारी पंजीयक व अध्यक्ष ने कहा, “कोर्ट फैसले की समीक्षा के बाद मामला जल्द निराकरण किया जाएगा।” कर्मचारी याचिकाकर्ता देवेंद्र पांडेय ने कहा कि यह सहकारिता अधिनियम के विपरीत है और केवल नई भर्ती पर रोक का जिक्र होना चाहिए था।