बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में एसईसीएल कर्मचारी की मृत्यु के 11 साल बाद मां-बेटी द्वारा की गई अनुकंपा नियुक्ति की मांग को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि इतने लंबे समय बाद आवेदन करने से योजना का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है, क्योंकि इसका मकसद मृतक के परिवार को तत्काल आर्थिक सहायता प्रदान करना है।
मामला एसईसीएल के एसडीएल ऑपरेटर इंजार साय से जुड़ा है, जिनकी 14 अगस्त 2006 को ड्यूटी के दौरान मौत हो गई थी। उनकी दो पत्नियां थीं—पहली शांति देवी और दूसरी इंद्रकुंवर। दोनों के बीच उत्तराधिकार विवाद के कारण मामला अदालत में चला गया। 2009 में एसईसीएल ने शांति देवी का आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि जब तक विवाद सुलझ नहीं जाता, नियुक्ति नहीं की जा सकती।
इसी बीच दूसरी पत्नी इंद्रकुंवर ने 17 अप्रैल 2017 को अपनी विवाहित बेटी प्रवीण के नाम से आवेदन किया, जिसे एसईसीएल ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि आवेदन 11 साल बाद किया गया है और आवेदिका विवाहित है। एनसीडब्ल्यूए के नियमों के अनुसार कर्मचारी की मृत्यु के पांच साल के भीतर ही अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया जा सकता है।
सिंगल बेंच ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि योजना का उद्देश्य तत्काल राहत देना है, न कि वर्षों बाद लाभ देना। इतने समय तक परिवार ने बिना सरकारी सहायता के जीवन-यापन कर लिया, इसलिए अब नियुक्ति का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
मां-बेटी ने इस आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील की, पर अदालत ने सिंगल बेंच के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा कि इसमें न तो कोई तथ्यात्मक गलती है, न ही कानूनी त्रुटि। इस प्रकार, अदालत ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति में देरी इसका उद्देश्य ही निष्प्रभावी कर देती है।


 
                    