जयपुर। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों से लेकर गुजरात के कच्छ तक भारतीय सशस्त्र बलों का बहुपक्षीय युद्धाभ्यास ‘त्रिशूल’ बुधवार को अंतिम चरण में पहुंचा। तीनों सेनाओं—थल, नौ और वायु—के साथ साइबर और आधुनिक युद्ध प्रणाली की सहभागिता ने अभ्यास को वास्तविक युद्ध परिप्रेक्ष्य से परखने का अवसर दिया।
अभ्यास में जमीन, आसमान और समुद्र के साथ-साथ सूचना व साइबर डोमेन में साझा रणनीतियों और समन्वय की जाँच की गई। गुरुवार को इसे औपचारिक रूप से समापन किया जाना है। समापन से पहले रेत के टीलों में टैंक, बख्तरबंद वाहन और हल्की-पहिया मशीनरी ने गति पराविक अभ्यास कर दुश्मन के काल्पनिक ठिकानों पर निर्णायक कार्रवाई का अनुकरण किया। इन संरचनाओं को वायुसेना के ढेरों हेलीकॉप्टर—ध्रुव, चेतक, रूद्र और चीता—ने एयर कवर प्रदान किया जिससे जमीन-आसमान के बीच तालमेल का परखने का मौका मिला।
अभ्यास के दौरान सुदर्शन चक्र और कोणार्क कोर के अलग-अलग टुकड़ियों ने तीव्र गतिशीलता, निशानेबाज़ी तथा बचाव व प्राथमिक चिकित्सा के संयुक्त संचालन का अभ्यास किया। ड्रोन-आधारित निगरानी, इलेक्ट्रॉनिक जामिंग और कूटनीतिक स्वचालित नियंत्रण प्रणालियों का उपयोग करते हुए वास्तविक समय अभिलेख-आधारित निर्णय लेने की क्षमताएँ परखी गईं।
लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ ने कहा कि भारतीय सेना भविष्य के किसी भी स्वरूप के संघर्ष के लिए पूरी तरह तैयार है। उन्होंने बताया कि एक विशेष ‘रूद्र ब्रिगेड’ का गठन किया गया है जिसमें इंजीनियर, साइबर विशेषज्ञ और ड्रोन संचालन टीम शामिल हैं जो तेज़, सटीक और बहु-आयामी कार्रवाई निभाने में सक्षम है। अनुशासित तैयारियों और उन्नत सामरिक-सामर्थ्य के जरिये यह अभ्यास देश की रक्षा तत्परता को मजबूती देता है।

