दिल्ली। कोलकाता एयरपोर्ट पर 13 साल से खड़ा एयर इंडिया का बोइंग 737-200 विमान लगातार खराब होता जा रहा था। लंबे समय से निष्क्रिय पड़े इस एयरक्राफ्ट को अब इसके आखिरी सफर पर रवाना किया गया है। लेकिन यह सफर आसमान में नहीं, बल्कि सड़क मार्ग से तय हुआ। विमान को ट्रैक्टर-ट्रेलर पर 1,900 किलोमीटर दूर बेंगलुरु भेजा गया, जहां इसका उपयोग अब प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।
दरअसल, यह मामला मानवीय भूल और प्रशासनिक चूक का अनोखा उदाहरण है। एयर इंडस्ट्री में जहां हर एसेट की कड़ी निगरानी होती है, वहीं 43 साल पुराना यह बोइंग 737-200 एयर इंडिया के रिकॉर्ड से ही गायब था। एयरलाइन अपने ही हैंगर में खड़ा विमान भूल गई और यह जानकारी कंपनी को 13 साल बाद तब मिली, जब कोलकाता एयरपोर्ट प्रशासन ने इसका उल्लेख किया।
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यह एयर इंडिया का एकमात्र बोइंग 737 था जिसमें प्रैट ऐंड व्हिटनी इंजन लगाया गया था। जबकि एयर इंडिया ने बाकी नौ निष्क्रिय विमान पहले ही बिना इंजन के बेच दिए थे। आश्चर्य की बात यह है कि तीन साल पहले जब एयर इंडिया का निजीकरण हुआ, तब यह विमान कंपनी के बहीखातों में ही नहीं था।
जैसे ही यह स्पष्ट हुआ कि विमान एयर इंडिया का है, उसे 14 नवंबर को कोलकाता से बेंगलुरु के लिए भेजने की प्रक्रिया शुरू की गई। रनवे से उड़ान भरना संभव नहीं था, क्योंकि वर्षों से खड़े रहने के कारण इसकी तकनीकी स्थिति खराब हो चुकी थी। इसलिए इसे विशेष ट्रैक्टर-ट्रेलर पर लादकर सड़क मार्ग से दक्षिण भारत तक ले जाया गया।
अब यह विमान बेंगलुरु में मेंटेनेंस इंजीनियरों के प्रशिक्षण में उपयोग होगा, जिससे यह एक तरह से अपनी “नई भूमिका” निभाएगा—हालांकि उड़ान भरने की क्षमता अब इसमें नहीं बची। यह मामला एयरलाइन इंडस्ट्री में एसेट मैनेजमेंट और निगरानी में लापरवाही का बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है।

