दिल्ली। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने भारत की रक्षा तकनीक को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाते हुए लड़ाकू विमान के ‘एस्केप सिस्टम’ का सफल रॉकेट-स्लेज परीक्षण किया है।
यह परीक्षण चंडीगढ़ स्थित टर्मिनल बैलिस्टिक्स रिसर्च लेबोरेटरी (TBRL) की रेल ट्रैक रॉकेट स्लेड (RTRS) केंद्र में किया गया। इस दौरान लड़ाकू विमान के अगले हिस्से को विशेष रॉकेट मोटरों की मदद से 800 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज गति से संचालित किया गया। परीक्षण के दौरान कैनोपी अलग होना और पायलट सीट का तेजी से बाहर निकलना (इजेक्शन सीक्वेंसिंग) पूरी तरह सफल रहा। इस पूरे सिस्टम ने डमी पायलट को सुरक्षित बाहर निकालने में 100% सफलता दिखाई।
यह तकनीक लड़ाकू विमानों में उड़ान के दौरान किसी भी आपातकालीन स्थिति में पायलट की जान बचाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाल ही में दुबई में स्वदेशी फाइटर जेट तेजस दुर्घटनाग्रस्त होने की घटना ने इस सिस्टम की आवश्यकता दोबारा उजागर कर दी थी। ऐसे हादसों में पायलट का जीवन केवल इसी तकनीक पर निर्भर रहता है।
एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के सहयोग से किए गए इस परीक्षण के साथ भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास उन्नत ‘इन-हाउस एस्केप सिस्टम परीक्षण’ की क्षमता है। अब यह तकनीक अमेरिका और चीन जैसे विकसित रक्षा देशों के समकक्ष भारतीय सामर्थ्य को दर्शाती है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने DRDO, ADA, HAL, भारतीय वायुसेना और उद्योग भागीदारों को बधाई देते हुए इसे आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। वहीं DRDO प्रमुख डॉ. समीर वी. कामत ने भी टीम को सराहना दी और कहा कि यह सफलता भारतीय रक्षा प्रणाली को और अधिक सुदृढ़ बनाएगी। यह परीक्षण न केवल तकनीकी श्रेष्ठता का प्रतीक है, बल्कि पायलटों के जीवन को सुरक्षित करने की दिशा में एक मजबूत कदम भी है।

