दिल्ली। भारत की ऊर्जा नीति में एक बड़े बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाते हुए लोकसभा ने बुधवार को ‘सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI) बिल’ को पारित कर दिया। इस बिल के पास होने के साथ ही देश के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी का रास्ता साफ हो गया है। माना जा रहा है कि यह फैसला पिछले 63 वर्षों से चले आ रहे राज्य के एकाधिकार को तोड़ते हुए परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी क्षेत्र की एंट्री को संभव बनाएगा।
सरकार का कहना है कि यह कानून भारत को स्वच्छ, टिकाऊ और आत्मनिर्भर ऊर्जा व्यवस्था की ओर ले जाने में अहम भूमिका निभाएगा। लोकसभा में चर्चा के दौरान केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि SHANTI बिल भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाला साबित होगा। उन्होंने बताया कि सरकार का लक्ष्य वर्ष 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता विकसित करने का है, और इस लक्ष्य को हासिल करने में निजी क्षेत्र की भागीदारी बेहद जरूरी है।
मंत्री ने कहा कि पूरी दुनिया स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों की ओर बढ़ रही है और भारत को भी वैश्विक मानकों के अनुरूप अपनी रणनीति को मजबूत करना होगा। निजी कंपनियों के आने से निवेश बढ़ेगा, नई तकनीकों का विकास होगा और रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।
हालांकि, इस बिल को लेकर विपक्ष ने तीखा विरोध दर्ज कराया। विपक्षी सांसदों का आरोप है कि नया कानून न्यूक्लियर डैमेज के लिए सिविल दायित्व अधिनियम, 2010 के प्रावधानों को कमजोर कर सकता है। उनका कहना है कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में उपकरण आपूर्तिकर्ताओं की जिम्मेदारी तय करने के मौजूदा प्रावधानों से समझौता किया जा रहा है, जिससे आम जनता की सुरक्षा पर सवाल खड़े होते हैं।
विपक्ष के हंगामे और आपत्तियों के बावजूद सरकार ने स्पष्ट किया कि परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होगा और सुरक्षा मानकों से किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा। SHANTI बिल को भारत की ऊर्जा सुरक्षा और दीर्घकालीन विकास के लिए एक अहम कदम के रूप में देखा जा रहा है।

