छत्तीसगढ़ के बार नवापारा के जंगलों में मार्च से भटक रहे नर बाघ को आखिरकार यहां बसने की अनुमति नहीं मिली। 9 महीने से वन विभाग की टीम उसकी निगरानी कर रही थी। बाघ की सुरक्षा के लिहाज से जंगल के कई रास्ते आम लोगों के लिए बंद कर दिए गए।
बार के जंगलों में 90 के दशक तक बाघ की मौजूदगी के प्रमाण हैं, इसलिए वन विभाग एक बार फिर यहां बाघों का घरौंदा बनाने की तैयारी में था, लेकिन नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी(एनटीसीए)ने बाघ बसाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया। एनटीसीए के विशेषज्ञों ने यहां तक कह दिया कि- टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में वन विभाग बाघों को सुरक्षा नहीं मिल रही है। ऐसे में हम ऐसे जंगल जो टाइगर रिजर्व नहीं है, वहां बाघ बसाने की अनुमति कैसे दे सकते हैं? यही वजह है कि मंगलवार को बाघ को ट्रैंक्युलाइज गन से बेहोश करने के बाद बार नहीं लाया गया। रातों रात गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट के जंगलों में छोड़ा गया।
कूनो की तर्ज पर बसाने का प्लान था
वन विभाग यहां राजस्थान के कूनो की तर्ज पर बाघों को बसाने का प्रोजेक्ट लॉन्च करने की तैयारी में था। इसके लिए देश के कई टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट से संपर्क कर वहां से बाघ व बाघिन मांगे गए थे। ताड़ोबा नेशनल पार्क से तीन बाघिन और एक बाघ मांगे गए थे। इसकी मंजूरी वहां के पार्क प्रबंधन ने दे भी दी थी।
दो बार सर्वे किया था टीम ने
बार नवापारा में बाघों को बसाने का प्लान बनाने के बाद एनटीसीए को पत्र लिखकर सर्वे के लिए बुलाया गया था। एनटीसीए की टीम दो बार बार नवापारा का सर्वे करने पहुंची। चूंकि बार के जंगलों में हिरण, चीतल खासी संख्या में हैं। यानी वे आसानी से शिकार कर सकते हैं। इसलिए उम्मीद थी कि ये बाघों का नया बसेरा बन सकेगा।