छत्तीसगढ़ के इन जिलों का पानी पीने से होगी बीमारी, रहे सावधान

छत्तीसगढ़ के बालोद, दुर्ग, कांकेर और भिलाई  के ग्राउंड वाटर में यूरेनियम की मात्रा तय मानक से ज्यादा निकली है। इस बात का खुलासा रिसर्च में हुआ है।  भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटी दुर्ग) के रसायनशास्त्र विभाग की रिसर्च में हुए जांच के अनुसार इस पानी के सेवन से पानी अगले कुछ साल में कैंसर, किडनी फेल होने और त्वचा की गंभीर बीमारियां पैदा कर सकता है।

रिसर्च में पाया गया है कि, पानी में यूरेनियम की मात्रा 30 से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन इन इलाकों के लिए पानी के सैंपल की जांच में यूरेनियम की मात्रा 86 से 105 पीपीबी (पाट्र्स पर बिलियन) तक पहुंच गई है। बीआईटी ने अपनी रिसर्च की रिपोर्ट राज्य सरकार के साथ डिपार्टमेंट ऑफ एटोमिक एनर्जी को भेजी है। इसके अलावा भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर यानी बार्क को भी इसकी जानकारी दी गई है। इन दोनों ही संस्थानों नेे बीआईटी की रिसर्च के डाटा का एनालिसिस किया है।

तैयार किया यूरेनियम रिमूवल

बीआईटी दुर्ग के रसायनशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. संतोष सार ने बताया कि, पानी में यूरेनियम की मात्रा बहुत अधिक है। इसका लगातार इस्तेमाल करने से हड्डी में गलावट आना शुरू हो जाएगी। बीआईटी ने इस रिसर्च के लिए 6 जिलों में जीपीएस की मदद से 6 स्क्वेयर किलोमीटर का सैंपल कलेक्ट किया है। इसमें पानी के जो सैंपल लिए गए हैं, उनमें यूरेनियम की मात्रा चिंता बढ़ाने वाली रही है। यहां के पानी में यूरेनियम को हटाने के लिए बीआईटी ने रिसर्च के अगले पड़ाव को आगे बढ़ाते हुए खास तरह का यूरेनियम रिमूवल तैयार किया है, जिसे भारतीय पेटेंट कार्यालय ने यूटिलिटी पेटेंट जारी कर दिया है। साथ ही इस रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए निर्देश दिए गए हैं।

इस तरह हुई रिसर्च

बीआईटी के प्रोफेसरों और रिसर्च स्कॉलर्स ने इस प्रोजेक्ट के तहत 6 जिलों के विभिन्न गांवों में पहुंचकर पानी का सैंपल कलेक्ट किया। सैंपल की जांच करने के दौरान बालोद जिले के देवतराई गांव का पानी सबसे दूषित मिला। इस पानी में यूरेनियम की मात्रा 89 पीपीबी मिली। यहां अधिकतर लोग बोरवेल का पानी पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिससे समस्या काफी बढ़ जाएगी। डॉ. सार ने बताया कि, पानी के सैंपल की जांच प्री और पोस्ट मानसून की गई ताकि पानी की जांच में सटीक जानकारी मिले। जांच में कनफर्म हो गया कि ग्राउंड वॉटर में यूरेनियम है। अब चैलेंज था कि, इस पानी से यूरेनियम को अलग कैसे किया जाए ताकि समस्या को खत्म किया जा सके। इसके लिए बीआईटी ने सस्ता व इकोफ्रेंडली मैथड का इस्तेमाल करते हुए आंवला के पेड़ की छाल का उपयोग कर नेचुरल यूरेनियम रिमूवल तैयार किया।

पेयजल से संबंधित विभागों ने नहीं लिया संज्ञान

बीआईटी ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि प्रदेश के इन 6 जिलों के विभिन्न गांवों के अलावा भी कई जगहों पर यूरेनियम की मात्रा ग्राउंड वॉटर में बहुत है, जिससे गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। कांकेर में सबसे अधिक 106 पीपीबी यूरेनियम पाया गया है। यह मात्रा किडनी फेल कर सकती है। पेयजल से संबंधित विभागों को इसकी जानकारी दी गई है। फिलहाल इसमें कोई संज्ञान नहीं लिया गया है।

 

Share This News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *