सुप्रीम कोर्ट में वक्फ बिल पर सुनवाई, केंद्र ने कहा; वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं

दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) कानून की वैधता को लेकर 20 मई से लगातार सुनवाई चल रही है। गुरुवार को इस मामले की सुनवाई तीसरे दिन भी जारी रहेगी। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि वक्फ केवल एक चैरिटी है और इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकारी जमीन पर किसी का हक नहीं हो सकता, भले ही उसे वक्फ घोषित कर दिया गया हो, इसलिए सरकार उसे वापस ले सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच कर रही है। केंद्र की ओर से तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पैरवी कर रहे हैं। इस मामले में पांच मुख्य याचिकाएं हैं, जिनमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है।

तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि यह बिल बिना सोच-विचार के नहीं बनाया गया है, बल्कि इसमें 97 लाख लोगों की राय शामिल है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता पूरी मुस्लिम समुदाय की ओर से नहीं बोल सकते और जिन लोगों ने याचिका दायर की है, वे सीधे तौर पर प्रभावित नहीं हैं। मेहता ने यह भी कहा कि वक्फ बाय यूजर मौलिक अधिकार नहीं है, इसे 1954 में विधायी नीति के तहत दिया गया था, जिसे वापस लिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों मुस्लिम पक्ष को कहा था कि वे मजबूत दलीलें पेश करें। केंद्र ने भी कहा है कि कोर्ट सुनवाई तक कानून के अहम प्रावधान लागू नहीं होंगे और यथास्थिति बनी रहेगी। यह कानून 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हुआ था, जिसे लोकसभा में बहस के बाद पारित किया गया था। इस कानून के खिलाफ कांग्रेस, AIMIM, AAP समेत कई संगठन और नेता याचिका लेकर आए हैं। कोर्ट में सुनवाई जारी है और दोनों पक्षों के तर्कों को गंभीरता से सुना जा रहा है।

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