दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा है कि भारत एक ‘कानून का राज’ वाला देश है और यहां शासन मनमानी या ताकत से नहीं, बल्कि संविधान और कानून से चलता है। मॉरीशस में आयोजित ‘रूल ऑफ लॉ मेमोरियल लेक्चर’ में उन्होंने अपने भाषण में भारत और मॉरीशस के ऐतिहासिक और गहरे रिश्तों को याद करते हुए कहा कि दोनों देशों ने उपनिवेशवाद की तकलीफें झेली हैं और आज स्वतंत्र लोकतांत्रिक समाज के रूप में एक-दूसरे के साथी हैं।
गवई ने स्पष्ट किया कि कानून ही असली ताकत है, न कि सत्ता की मनमानी। उन्होंने कहा कि कानून का पालन हर व्यक्ति को करना होगा, चाहे वह आम नागरिक हो या सत्ता में हो। इतिहास में कई बार कानून के नाम पर अन्याय हुआ, जैसे गुलामी या औपनिवेशिक कानून, लेकिन असली कानून वही है जो न्याय, बराबरी और इंसाफ सुनिश्चित करे।
मुख्य न्यायाधीश ने महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर की सोच को याद करते हुए कहा कि किसी भी निर्णय का असर समाज के सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति पर भी सोचा जाना चाहिए। संविधान ने नियम और प्रक्रियाएं तय की हैं ताकि सत्ता का दुरुपयोग न हो और हर इंसान को न्याय मिले।
गवई ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का उदाहरण दिया: केशवानंद भारती केस (1973), मेनका गांधी केस (1978), ट्रिपल तलाक मामला (2017), और एलेक्टोरल बॉन्ड मामला (2024), जिन्होंने कानून के राज और न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने हाल ही के अपने फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि बिना सुनवाई और कानूनी प्रक्रिया के किसी का घर बुलडोजर से गिराना कानून के राज के खिलाफ है। उन्होंने कहा, “भारत बुलडोजर के राज से नहीं, संविधान और कानून के राज से चलता है।” मुख्य न्यायाधीश गवई का यह बयान देश में न्याय, संविधान और कानून की सर्वोच्चता पर जोर देता है और यह स्पष्ट करता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में मनमानी का कोई स्थान नहीं है।