रायपुर। प्रदेश में नए शिक्षा सत्र से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बदलाव किए जा रहे हैं। इसके अनुसार अब स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें लागू की जाएंगी, लेकिन इससे छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढ़ से जुड़े पाठ्यक्रमों को हटाने की तैयारी चल रही है।
हाल ही में एनसीईआरटी की एक टीम दिल्ली से रायपुर आई थी, और स्टेयरिंग कमेटी ने तैयार किताबों को मंजूरी दी है। अब राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि एनसीईआरटी की पुस्तकों को राज्य के स्कूलों में लागू किया जाएगा। इसके तहत छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी, कुडुख, सरगुजिया जैसी भाषाओं के पाठ्यक्रम को हटाने की संभावना है।
नई नीति लागू होने से ये पड़ेगा असर
अगर ऐसा होता है, तो छत्तीसगढ़ी और अन्य स्थानीय भाषाओं से संबंधित पाठों को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया जाएगा। इससे विद्यार्थियों को छत्तीसगढ़ के रचनाकारों और सांस्कृतिक धरोहरों के बारे में जानकारी नहीं मिल पाएगी।
वर्तमान में, छत्तीसगढ़ी और अन्य भाषाओं जैसे गोंडी, हल्बी, कुडुख, और सरगुजिया की सामग्री तीसरी से आठवीं कक्षा तक की किताबों में शामिल की जाती है। इसमें प्रदेश के प्रसिद्ध साहित्यकारों जैसे माधव राव सप्रे, पदुमलाल बक्शी, हरी ठाकुर, और नारायण लाल परमार के बारे में पाठ्य सामग्री दी जाती है।
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत थ्री लैंग्वेज फार्मूला
नई शिक्षा नीति के अनुसार, अब सभी सरकारी और निजी स्कूलों में तीन भाषाएं सिखाई जाएंगी। इनमें से दो भारतीय भाषाएं होंगी और एक विदेशी या अन्य भारतीय भाषा होगी। राज्य सरकार ने इस बदलाव को लागू करने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों से बैठक की है। अब देखना होगा कि यह बदलाव प्रदेश के शिक्षा और संस्कृति पर कितना प्रभाव डालेगा।
- पहली भाषा: विद्यार्थी की मातृभाषा या स्थानीय भाषा होगी।
- दूसरी भाषा: हिंदी या राज्य की कोई दूसरी भारतीय भाषा होगी।
- तीसरी भाषा: अंग्रेजी या कोई अन्य विदेशी भाषा हो सकती है।