हर निजी संपत्ति भौतिक संसाधन नहीं, सरकारें सभी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर कब्जा नहीं कर सकतीं: सुप्रीम कोर्ट

क्या सरकार आम लोगों की भलाई के लिए निजी संपत्तियों का संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत अधिग्रहण कर सकती है? इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने मंगलवार को 1978 (45 साल पहले) में दिया गया अपना ही फैसला पलट दिया।

CJI की अध्यक्षता वाली 9 जजों की बेंच ने 7:2 के बहुमत वाले फैसले में कहा, ‘हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं कह सकते। कुछ खास संपत्तियों को ही सरकार सामुदायिक संसाधन मानकर इनका इस्तेमाल आम लोगों के हित में कर सकती है। बेंच ने 1978 में दिए जस्टिस कृष्ण अय्यर के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था, ‘सभी निजी संपत्तियों पर राज्य सरकारें कब्जा कर सकती हैं।’ CJI बोले- पुराना फैसला विशेष आर्थिक, समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। हालांकि राज्य सरकारें उन संसाधनों पर दावा कर सकती हैं जो भौतिक हैं और सार्वजनिक भलाई के लिए समुदाय द्वारा रखे जाते हैं।

CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह फैसले पर एकमत थे। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से आंशिक रूप से असहमति जताई, जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने सभी पहलुओं पर असहमति जताई। सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई को इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता समेत कई वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

कोर्ट में इस मसले पर 16 याचिकाएं दाखिल हुई थीं

बेंच 16 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (POA) द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल है। POA ने महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट एक्ट (MHADA) अधिनियम के अध्याय VIII-ए का विरोध किया है।

1986 में जोड़ा गया यह अध्याय राज्य सरकार को जीर्ण-शीर्ण इमारतों और उनकी जमीन को अधिगृहीत करने का अधिकार देता है, बशर्ते उसके 70% मालिक ऐसा अनुरोध करें। इस संशोधन को प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन की ओर से चुनौती दी गई है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि MHADA प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 31 सी द्वारा संरक्षित है, जिसे कुछ नीति निदेशक तत्वों (DPSP) को प्रभावी करने वाले कानूनों की रक्षा के इरादे से 1971 के 25 वें संशोधन अधिनियम द्वारा डाला गया था।

महाराष्ट्र सरकार ने 1986 में संपत्ति अधिग्रहण कानून में बदलाव किया

राज्य सरकार इमारतों की मरम्मत के लिए महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MHADA) कानून 1976 के तहत इन मकानों में रहने वाले लोगों पर उपकर लगाता है। इसका भुगतान मुंबई भवन मरम्मत एवं पुनर्निर्माण बोर्ड (MBRRB) को किया जाता है, जो इन इमारतों की मरम्मत का काम करता है।

अनुच्छेद 39 (B) के तहत दायित्व को लागू करते हुए MHADA अधिनियम को साल 1986 में संशोधित किया गया था। इसमें धारा 1A को जोड़ा गया था, जिसके तहत भूमि और भवनों को प्राप्त करने की योजनाओं को क्रियान्वित करना शामिल था, ताकि उन्हें जरूरतमंद लोगों को ट्रांसफर किया जा सके। संशोधित MHADA कानून (Maharashtra Housing and Area Development Authority Act) में अध्याय VIII-A में प्रावधान है कि राज्य सरकार अधिगृहीत इमारतों और जिस भूमि पर वे बनी हैं, उनका अधिग्रहण कर सकती हैं, यदि वहां रहने वाले 70 प्रतिशत लोग ऐसा अनुरोध करते हैं।

​​​​​​​कोर्ट के इस फैसले का क्या असर होगा

संपत्ति पर राज्य के अधिकार को लेकर दशकों से मुकदमेबाजी चल रही है। मुक्त अर्थव्यवस्था के दौर में निजी संपत्ति को मान्यता मिलने के बाद ऐसे फैसलों का महत्व ज्यादा है। हालांकि इस फैसले के बाद भी सरकार सामाजिक कल्याण और लोकहित में निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है। सरकारें जमीन अधिग्रहीत कर गरीबों को मकान बनाकर दे सकती हैं। हालांकि अधिग्रहण समाज की भलाई के लिए हो और मुआवजा मार्केट रेट से देना होगा। रेड्‌डी और संजीव कोक केस क्या था?

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