दिल्ली। स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट की नई रिपोर्ट ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में मानव-जनित पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण 17 लाख से अधिक लोगों की जान गई। यह आंकड़ा 2010 की तुलना में 38 प्रतिशत अधिक है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का सीधा असर लोगों के जीवन, स्वास्थ्य और आजीविका पर पड़ रहा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जंगल की आग और जीवाश्म ईंधनों से निकलने वाला धुआं भारत की हवा में लगातार जहर घोल रहा है। 2020 से 2024 के बीच हर साल औसतन 10,200 मौतें जंगल की आग से उत्पन्न पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण हुईं, जबकि कोयला और तरल गैस से संबंधित प्रदूषण से 7.52 लाख (44%) लोगों की मौत हुई। सड़क परिवहन में पेट्रोल के उपयोग से भी लगभग 2.69 लाख मौतें दर्ज की गईं।
रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक से गर्मी से संबंधित मौतों में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो अब 5.46 लाख प्रति वर्ष हो चुकी है। 2024 में अत्यधिक गर्मी के कारण वैश्विक स्तर पर श्रम क्षमता में कमी से करीब 194 अरब डॉलर की आय का नुकसान हुआ। इसमें प्रति व्यक्ति औसतन 420 घंटे की श्रम हानि हुई, जो 1990 के दशक की तुलना में 124 प्रतिशत अधिक है।
भारत में भी लू का प्रकोप तेजी से बढ़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में प्रत्येक व्यक्ति ने औसतन 19.8 दिन लू वाले दिनों का सामना किया, जिनमें से 6.6 दिन जलवायु परिवर्तन के कारण थे। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि प्रदूषण नियंत्रण और जलवायु नीतियों पर त्वरित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और गहरा सकता है।


 
                     
                    