दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी नाबालिग की संपत्ति उसके प्राकृतिक अभिभावक ने बिना अदालत की अनुमति के बेच दी हो, तो बालिग होने के बाद उसे उस बिक्री को रद करने के लिए मुकदमा दायर करने की आवश्यकता नहीं है। वह अपने आचरण से जैसे संपत्ति को दोबारा बेच देने से उस सौदे को अस्वीकार कर सकता है।
जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने कर्नाटक के दावणगेरे जिले के एक मामले में यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम, 1956 के तहत नाबालिग की संपत्ति बेचने के लिए अभिभावक को अदालत की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है। बिना अनुमति की गई बिक्री “voidable” यानी रद्द की जा सकने योग्य है।
मामला उस समय से जुड़ा था जब एक पिता ने अपने तीन नाबालिग बेटों के नाम पर खरीदे दो प्लॉट जिला अदालत की मंजूरी के बिना बेच दिए थे। बालिग होने पर बेटों ने वही प्लॉट दूसरे व्यक्ति को दोबारा बेच दिए। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह कदम अपने आप में पूर्व बिक्री को अस्वीकार करने का संकेत है और इसके लिए अलग मुकदमा दायर करने की आवश्यकता नहीं।
कोर्ट ने कहा कि नाबालिग के वयस्क होने पर मुकदमा दायर करना केवल एक विकल्प है, बाध्यता नहीं। यदि उसके कार्यों से यह स्पष्ट हो कि वह पहले की बिक्री से सहमत नहीं, तो वह पर्याप्त माना जाएगा। यह फैसला नाबालिगों के संपत्ति अधिकारों को सशक्त बनाने वाला माना जा रहा है।

