वाराणसी में ज्ञानवापी के पूरे परिसर का सर्वे नहीं होगा। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने शुक्रवार को इससे जुड़ी हिंदू पक्ष की याचिका खारिज कर दी। हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि मुख्य गुंबद के नीचे 100 फीट का शिवलिंग मौजूद है। ऐसे में पूरे परिसर की खुदाई कराकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वे कराया जाए।
हिंदू पक्ष के वकील जय शंकर रस्तोगी ने बताया कि हम इस मामले को लेकर अब हाईकोर्ट जाएंगे। एक अन्य वकील मदन मोहन ने बताया, ‘वजू खाना और ASI सर्वे कराने की मांग पहले से ही हाईकोर्ट में लंबित है। उसके विरोधाभास में जिला कोर्ट कोई आदेश नहीं दे सकती थी। शायद इस वजह से यह याचिका खारिज कर दी गई है।
33 साल पुराना केस
फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 1991 में दायर याचिका पर फैसला सुनाया। इसे 33 साल पहले स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर से पं. सोमनाथ व्यास, डॉ. रामरंग शर्मा और पं. हरिहर नाथ पांडेय ने पूरे परिसर की एएसआई सर्वे की मांग उठाई थी। हालांकि, तीनों की मौत हो चुकी है। अब वादी वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी हैं।
मुस्लिम पक्ष ने कहा- खुदाई से मस्जिद को नुकसान पहुंच सकता है
पूरे परिसर के सर्वे मांग वाली याचिका पर 8 महीने से फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई चली। इस दौरान मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने दलील दी थी कि जब ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वेक्षण एक बार पहले हो चुका है, तो दूसरा सर्वेक्षण करने का कोई औचित्य नहीं है। सर्वेक्षण के लिए मस्जिद परिसर में गड्ढा खोदना किसी भी तरह से व्यावहारिक नहीं होगा। इससे मस्जिद को नुकसान हो सकता है।
हिंदू पक्ष के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने मुस्लिम पक्ष की दलीलों का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि एएसआई ने परिसर में तालाब और कमीशन की कार्यवाही में मिले शिवलिंग का निरीक्षण नहीं किया गया। रिपोर्ट में भी इनका कोई उल्लेख नहीं है।
दलील में कहा कि सर्वे में विधिवत मशीनों का प्रयोग नहीं किया गया, स्थल पर खुदाई कर अवशेषों की तलाश नहीं की गई। इसके अलावा परिसर का बड़ा क्षेत्र सर्वे से अछूता है। इसमें कई साक्ष्य मिलने की संभावना है।
1991 से अब तक ज्ञानवापी का पूरा मामला समझिए…
- आजादी से पहले से अब तक ज्ञानवापी पर विवाद कई बार सुर्खियों में रहा है। हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का हिस्सा है। इसको लेकर कई बार मुकदमे हुए, लेकिन वह किसी रिजल्ट तक नहीं पहुंचे हैं। 1991 में पहली बार यह विवाद राष्ट्रीय सुर्खियों में आया।
- तब वाराणसी के पंडित सोमनाथ व्यास समेत 3 ने कोर्ट में केस दायर किया। इसमें इन्होंने ज्ञानवापी को काशी विश्वनाथ परिसर का ही हिस्सा होने की बात कही। याचिका में कोर्ट से अपील की गई थी कि ज्ञानवापी में दर्शन, पूजन और सनातनी धर्म के अन्य कार्यों को नियमित करने की अनुमति दी जाए।
- इस मामले में कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को सर्वे करने के आदेश दिए। हालांकि, वाराणसी कोर्ट के इस आदेश पर मुस्लिम पक्ष हाईकोर्ट पहुंच गया। हाईकोर्ट ने सर्वे पर स्टे लगा दिया। तब से यह केस फ्लोर में नहीं आया।
2021 में 5 महिलाओं ने ज्ञानवापी पर दाखिल की याचिका
- दिल्ली की रहने वाली राखी सिंह और बनारस की रहने वाली लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ओर ने वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में 18 अगस्त 2021 में एक याचिका दाखिल की।
- इसमें कहा गया कि ज्ञानवापी परिसर में हिंदू देवी-देवताओं का स्थान है। ऐसे में ज्ञानवापी परिसर में मां शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की अनुमति दी जाए। इसके साथ ही परिसर स्थित अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा के लिए सर्वे कराकर स्थिति स्पष्ट करने की बात भी याचिका में कही गई।
- मां शृंगार गौरी का मंदिर ज्ञानवापी के पिछले हिस्से में है। 1992 से पहले यहां नियमित दर्शन-पूजन होता था। लेकिन, बाद में सुरक्षा व अन्य कारणों के बंद होता चला गया। अभी साल में एक दिन चैत्र नवरात्र पर शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन की अनुमित होती है।
- मुस्लिम पक्ष को शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन में आपत्ति नहीं है। उनका विरोध पूरे परिसर का सर्वे और वीडियोग्राफी कराए जाने पर है।
कोर्ट ने इस याचिका पर सर्वे का आदेश दिया
- 5 महिलाओं की याचिका पर करीब आठ महीने तक सुनवाई और दलीलें चलतीं रहीं। 26 अप्रैल को कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया। इसके लिए, कोर्ट ने ही एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किए। सर्वे टीम 6-7 मई को सर्वे के लिए पहुंची तो वहां हंगामा और विरोध हुआ।
- इसके बाद दोनों पक्ष फिर कोर्ट गए। मुस्लिम पक्ष ने एडवोकेट कमिश्नर को बदलने की मांग की। हिंदू पक्ष ने तहखानों समेत पूरे परिसर की वीडियोग्राफी की मांग की। दोनों ने तीन दिन तक फिर से दोनों पक्षों को सुना। इसके बाद कोर्ट ने 12 मई को ASI सर्वे कराने को लेकर फाइनल फैसला सुनाया था।