डिजिटल नहीं, ये साइकोलाजिकल अरेस्ट, बचे इस तरह से

 डिजिटल अरेस्ट…साइबर फ्राड का इस समय सबसे ज्यादा प्रचलित तरीका और उतना ही खतरनाक। क्योंकि इसमें ठगी लाखों-करोड़ों रुपए की होती है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार से लेकर पुलिस और अलग-अलग एजेंसियां इसे लेकर व्यापक स्तर पर जागरुकता अभियान चला रही हैं।

लेकिन इसके बाद भी डिजिटल अरेस्ट की वारदात कम नहीं हो रहीं। इसकी वजह है- ठगों का शातिर तरीका। जिसमें उनके बातचीत का लहजा, वीडियो काल के दौरान उनका ड्रेसिंग सेंस एक बड़े अफसर की तरह होता है। उनकी बातचीत में इतना आत्मविश्वास होता है, संभ्रांत वर्ग के पढ़े-लिखे लोग झांसे में आ जाते हैं और अपनी जीवनभर की कमाई से हाथ धो बैठते हैं।

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साइबर एक्सपर्ट मोहित साहू ने ने डिजिटल अरेस्ट के अलग-अलग मामलों को लेकर बाकायदा केस स्टडी की। इसमें उन बिंदुओं को लेकर पड़ताल की गई, जिनके जरिए लाेग डिजिटल अरेस्ट के जाल में फंस रहे हैं। इसमें सामने आया कि यह एक तरह का साइकोलाजिकल अरेस्ट है। साइकोलाजिकल अरेस्ट इसलिए क्याेंकि ठग सामने वाले को यकीन दिला देता है कि वह पुलिस, सीबीआइ या अन्य कोई जांच एजेंसी का अफसर है। वह यह सबकुछ कानून के दायरे में रहकर कर रहा है। बातचीत का लहजा ही फंसने को मजबूर कर देता है।

वह कारण…जिनके जरिए आसानी से फंस जाते हैं कानून तक के जानकार
  1. वर्दी वाला फोटो: इस तरह ठगी करने वालों की वाट्स एप प्रोफाइल पर डीपी में वर्दी वाला फोटो होता है। पीछे उस राज्य की पुलिस या जांच एजेंसी का लोगो होता है। जिसे एक नजर में देखने पर यही लगता है- फोन करने वाला अफसर है।
  2. वीडियो काल पर भी वर्दी: ठगी करने वाले वाट्स एप पर वीडियो काल करते हैं, इस दौरान भी अक्सर वर्दी ही पहने हुए होते हैं।
  3. अंग्रेजी के शब्द और बातचीत: यह लोग बिलकुल कार्पोरेट अंदाज में बातचीत करते हैं, बीच-बीच में अंग्रेजी के शब्द या हो सकता है अंग्रेजी में ही बात करें। सामान्यत: लोगों को धारणा होती है कि ठग इतनी अच्छी अंग्रेजी नहीं जानते।
  4. प्री-रिकार्डेड काल: अब नया तरीका ठगों ने निकाला है। इसमें प्री-रिकार्डेड काल करते हैं। जिसमें अलग-अलग आप्शन के लिए अलग-अलग नंबर डायल करने होते हैं। इसे अक्सर लोग असल काल समझ लेते हैं।
  5. कानून की जानकारी: यह अलग-अलग अधिनियम, धाराओं का उल्लेख बातचीत में करते हैं। जिससे लोग प्रभावित हो जाते हैं और इन्हें हकीकत का पुलिस अधिकारी समझ बैठते हैं।
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बचना है तो यह समझ लीजिए
  1. अगर आपके पास काल आए कि आपके पार्सल में ड्रग पकड़ा गया है। या फिर मनी लांड्रिंग केस में नाम आया है तो सबसे पहले यहीं सावधान हो जाएं। जब आपने न तो कोई पार्सल भेजा है, पार्सल् भेजा भी है तो उसमें कोई अन्य सामान भेजा है तो ड्रग कैसे निकल सकता है। इत्मिनान से सोचें और सबसे पहले अपने पास ही में स्थित थाने जाएं। वहां जाकर उस नंबर पर बात कराएं।
  2. जब भी किसी व्यक्ति को किसी मामले में आरोपित बनाया जाता है तो पुलिस या जांच एजेंसी न तो वीडियो काल करती है न वाट्स एप पर बयान दर्ज करती है। कानून में ही ऐसा प्रविधान नहीं है। बगैर आपका पक्ष सुने कोई गिरफ्तारी इस तरह नहीं होती।
  3. जब भी कोई पुलिस अधिकारी या जांच एजेंसी का अधिकारी बन फोन करे, फिर कहे कि कैमरे को चारों तरफ घुमाइए तो सावधान हो जाइए। वह जानना चाहता है आपके आसपास कौन है।
  4. जब भी एफआइआर, वारंट की जानकारी भेजे तो इसे आनलाइन जांचा जा सकता है। अपने नजदीकि थाने में जाकर इसकी पड़ताल करा लें।
  5. किसी भी राज्य की पुलिस या जांच एजेंसी कभी भी पैसे जमा करने के लिए दबाव नहीं डालती। अगर किसी अपराध में संलिप्तता है तो पैसे देने पर भी सबूतों से छेड़छाड़ हो ही नहीं सकती। इसलिए पैसा कतई न डालें।
  6. उस नंबर को ब्लाक करें, किसी दूसरे नंबर पर आपका काल ट्रांसफर किया जाए तो बात न करें।
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