CG में गिद्धों के लिए बना रेस्टोरेंट: नक्सल प्रभावित मदेड़ के जंगलों में बनाया गया रेस्टाेरेंट, ग्रामीण भी करते है मदद

रायपुर। छत्तीसगढ़ स्थित इन्द्रावती टाइगर रिजर्व बीजापुर की ओर से गिद्धों के भोजन के लिए मद्देड़ से लगभग 12 किमी दूर सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जंगल में रेस्टोरेंट बनाया गया है, बांस एवं बल्ली से बाउंड्री बनाया गया है। आसपास के गांवों के ग्रामीण मवेशियों के मरने के बाद यहां पहुंचा देते हैं, जिससे गिद्ध मरे हुए मवेशियों को खाते हैं।

इस रेस्टोरेंट के चलते टाइगर रिजर्व बीजापुर में 3 विलुप्त प्रजाति इंडियन वॉल्चर, व्हाइट रम्पेड वॉल्चर एवं ग्रीफॉन वॉल्चर के गिद्धों की पुष्टि भोपालपटनम के बामनपुर ग्राम के सकलनारायण पहाड़ के पिछले हिस्से के गद्दलसरी गुट्टा इलाके में की गईं थी, इनकी अनुमानित संख्या 140 गिद्धों की थी, पर वर्तमान में इसकी संख्या बढ़कर लगभग 205 बताई जा रही है।

निगरानी-टैगिंग करने मुंबई से बुलाया गया एक्सपर्ट

इंद्रावती टायगर रिजर्व जगदलपुर के मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीवन) एवं क्षेत्रीय निदेशक आरसी दुग्गा ने बताया कि गिद्धों के लिए बनाए गए रेस्टोरेंट से गिद्धों की निगरानी, फॉरेस्ट्री जूलॉजी एवं अनुसंधान हो सकेगा। गिद्धों की टैगिंग के लिए मुबंई के विशेषज्ञों को बुलाया गया है।

ग्रीफॉन गिद्ध के मिले घोंसले

इन्द्रावती टाइगर रिजर्व बीजापुर के उप निदेशक संदीप बल्गा की कड़ी निगरानी से गिद्धों की भोजन, घोसले का संरक्षण और गर्भावधि के चलते गिद्ध मित्रों ने संरक्षित करने का प्रयास किया। इसी दौरान तीसरी प्रजाति आई ग्रीफॉन गिद्ध यह प्रजाति प्रवासी होती है, लेकिन संरक्षण के चलते प्रजाति भी रहवासी हो गई है। इस प्रजाति के गिद्ध के 2022 एवं 2024 में घोसले पाए गए हैं।

वल्चर रेस्टोरेंट से क्या फायदा होगा 

टाइगर रिजर्व के अधिकारियों के अनुसार वल्चर रेस्टोरेंट में गिद्धों को अच्छी क्वालिटी का मांस मिलेगा, जिससे उनकी फैट, मिनरल्स और कैल्शियम की जरूरतें पूरी होंगी। इसका सकारात्मक असर उनकी ब्रीडिंग पर पड़ेगा और उनकी संख्या में बढ़ोतरी होगी। वल्चर रेस्टोरेंट का ये कॉन्सेप्ट सबसे पहले महाराष्ट्र के रायगढ़ में साल 2012 में शुरू किया गया था। यहां इसके नतीजे बेहतर मिले हैं।

ऐसे ही पठानकोट के धारकलां क्षेत्र की चंडोला खड्ड में भी वल्चर रेस्टोरेंट बनाया गया है। इस रेस्टोरेंट की वजह से गिद्धों की 4 प्रजातियों सेबेरियुस वल्चर, हिमालयन वल्चर, ग्रिफ और व्हाइट रैंपर्ड की संख्या में 10 गुना से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। 2020 में यहां 40 गिद्ध थे अब यहां 400 से ज्यादा है।

डायक्लोफेनिक की वजह से कम हुई गिद्धों की संख्या

गिद्धों की आबादी कम होने की सबसे बड़ी वजह डायक्लोफेनिक दवा है जिसका इस्तेमाल मवेशियों के इलाज में किया जाता है। टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर अब्दुल अंसारी के अनुसार गांवों में मवेशी रखने के पैटर्न में बदलाव आया है। गाय-भैंसों को होने वाली कुछ बीमारियों के इलाज के लिए डायक्लोफेनिक जैसी दवाएं इस्तेमाल की जाती हैं। ऐसे मवेशियों का शव खाना गिद्धों के लिए जानलेवा होता है।

इसके इस्तेमाल पर 2006 में रोक लगा दी गई है। हालांकि, अभी भी ऐसी दवाइयां मवेशियों को दी जा रही हैं और ऐसे शवों का मांस खाने पर गिद्ध बीमार होकर मर जाते हैं। अंसारी कहते हैं कि गिद्ध कभी शिकार नहीं करते, वह केवल मरे हुए जीव ही खाते हैं। उनके मुताबिक गिद्धों की आबादी बढ़ना स्वस्थ पर्यावरण के लिहाज से जरूरी है। उनके न होने या कम होने से इंसानों को नुकसान है। गिद्ध ऐसा पक्षी है जो पर्यावरण की गंदगी साफ कर वातावरण को इंसानों के रहने लायक बनाए रखता है।

भारत में 1983 में बना पहला वल्चर रेस्टोरेंट

भारत में पहला वल्चर रेस्टोरेंट संभवत: 1983 में मुंबई से 150 किलोमीटर दूर रायगढ़ इलाके में बनाया गया था। यह फसंध वाइल्ड लाइफ पार्क में है, जहां के मेन्यू में गाय, भैंस और दूसरे जानवरों के शव मुहैया कराए जाते हैं। इसका मकसद किसानों को मरे हुए जानवरों से इनकम कराना भी है। ये रेस्टोरेंट दो एकड़ में फैला है। इसके आसपास तारों का एक बाड़ा बनाया गया है, ताकि इन्हें खाना खाते वक्त परेशानी न हो। इस रेस्टोरेंट का खर्च महाराष्ट्र फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने ईएलए फाउंडेशन के साथ मिलकर उठाया।

 

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