मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र पर बाल-आयोग पहुंचा SC

दिल्ली। राष्ट्रीय बाल आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है, जिसमें पूछा गया है कि क्या बाल विवाह की अनुमति देने वाले मुस्लिम पर्सनल लॉ से बाल विवाह रोकने वाले कानून का उल्लंघन होगा। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले की जल्द से जल्द सुनवाई की जाए, क्योंकि अलग-अलग हाईकोर्ट्स इस मामले में अलग-अलग फैसले सुना रहे हैं। इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा कि उन्हें इस मामले का निपटारा करना है, इसलिए इसे सुनवाई के लिए जल्द लिस्ट करेंगे।

हाईकोर्ट ने मुस्लिम लॉ का हवाला दिया था

पिछले साल जून में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में दिए शादी के प्रावधान का हवाला देते हुए आदेश दिया था कि मुस्लिम लड़की जब प्यूबर्टी से गुजर जाती है (युवा हो जाती है) तो उसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अपनी पसंद के किसी व्यक्ति से शादी करने की अनुमति है। यह उम्र 15 साल तय की गई है। NCPCR ने अपनी याचिका में हाईकोर्ट के इसी आदेश को चुनौती दी है। सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि 14, 15 और 16 साल तक की मुस्लिम लड़कियों की शादी हो रही है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए आदेश को दूसरे मामलों में मिसाल के तौर पर न देखा जाए।

इससे पहले राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि मुस्लिम लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को बाकी धर्मों की लड़कियों की न्यूनतम उम्र जितना ही कर दी जाए। फिलहाल देश में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 और लड़कों की न्यूनतम उम्र 21 है। हालांकि मुस्लिम महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र वह मानी जाती है, जब वे प्यूबर्टी पार करती हैं। NCW ने कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को 15 साल की उम्र में शादी करने की अनुमति देना मनमानी, अतार्किक, भेदभावपूर्ण और कानून का उल्लंघन करने वाली बात है। इस याचिका में कहा गया कि POCSO एक्ट भी कहता है कि 18 साल से कम उम्र को युवा सेक्स के लिए अनुमति नहीं दे सकते।

NCW के मुताबिक, यह याचिका इसलिए दाखिल की गई थी कि नाबालिग मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का पालन हो सके, ताकि इस्लामिक पर्सनल लॉ को बाकी धर्मों पर लागू होने वाले कानूनों के बराबर किया जा सके। बाल आयोग ने मांग की है कि 18 साल के बच्चों की रक्षा के लिए बनाए गए संवैधानिक कानूनों को सही तरह से लागू किया जाए। बाल आयोग ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए बाल विवाह रोकने वाला कानून, 2006 और POCSO के प्रावधानों को आधार बनाया। आयोग ने कहा कि यह आदेश बाल विवाह रोकने वाले कानून का उल्लंघन करता है। यह सेक्युलर कानून है और सभी पर लागू होता है। इसमें यह तर्क भी दिया गया कि POCSO के प्रावधानों के मुताबिक, 18 साल से उम्र का कोई बच्चा सही अनुमति नहीं दे सकता।

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