आतंकियों की नई चाल- गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग ले रहे, लोकल लोगों की भर्ती से भी बच रहे

अक्टूबर में बारामूला पुलिस को एक अजीब वारदात पता चली। एक सुदूर गांव में जंगल के पास बनी दुकान का दरवाजा रात में आतंकियों ने तोड़ दिया। खाने-पीने और राशन का काफी सामान ले गए। सामान की कीमत से ज्यादा रुपए एक डिब्बे के नीचे रख गए। दुकान पर 15 दिन में यह दूसरी वारदात थी। वहीं, किश्तवाड़ में हुए एनकाउंटर में रातभर में आतंकवादियों ने सिर्फ 6 फायर किए और भाग गए।

ये दो घटनाएं जम्मू–कश्मीर में पाक से घुसे आतंकियों की बदलती रणनीति दिखाती हैं। पहला, न लोकल आतंकी भर्ती किए जा रहे हैं, न लोकल मददगार रखे जा रहे हैं। सब खुद मैनेज कर रहे हैं। दूसरा, उनके ट्रेनिंग, हथियार और कम्युनिकेशन डिवाइस काफी उन्नत हैं। विभिन्न एजेंसियों के इनपुट बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में 125 से ज्यादा विदेशी आतंकवादी हैं। हालांकि, सेना ने 25 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच आतंकियों के खिलाफ 10 से ज्यादा ऑपरेशन किए हैं। इसमें सात आतंकी मारे गए हैं। एक पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘हर साल अप्रैल-जुलाई और अक्टूबर में 50 से 70 आतंकी घुसपैठ करते रहे हैं। इतने ही लोकल आतंकी होते थे। इस बार लोकल आतंकी कम हैं।

आतंकियों की सबसे ज्यादा हलचल सोपोर-बारामूला में

कश्मीर में मुख्य रूप से तीन आतंकी संगठन सक्रिय हैं। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयब्बा और हिजबुल-मुजाहिद्दीन। जैश ने कश्मीर में आत्मघाती हमले किए। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक सोपोर-बारामूला में करीब 30 आतंकी हैं। बारामूला-पट्टन-किरिरी पट्टी में 10 और सोपोर में 20 से ज्यादा विदेशी आतंकी हैं। बांदीपुरा-हाजिन में यह संख्या 18 तक है। शोपियां-कुलगाम में 18 से 20, पुलवामा में 10 से 15, कुपवाड़ा और अनंतनाग में 10 से ज्यादा विदेशी आतंकी हैं। जम्मू डिवीजन में 45 से 50 विदेशी आतंकवादी सक्रिय हैं।

डेढ़ दशक से शांत जम्मू के इलाकों में भी आतंकवाद दिखने लगा। रियासी, कठुआ, पुंछ, सांबा, रामबन और डोडा-किश्तवाड़ में आतंकी हलचल की खबरें लगातार आ रही हैं। जम्मू–कश्मीर से लगते हिमाचल और पंजाब के कुछ​ जिलों से भी घुसपैठ की रिपोर्ट्स हैं। कश्मीर में मुख्य रूप से 3 आतंकी संगठन सक्रिय हैं। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयब्बा और हिजबुल-मुजाहिद्दीन। जैश ने कश्मीर में आत्मघाती हमले किए हैं।

आतंकियों ने बदली कम्युनिकेशन और मूवमेंट की रणनीति

मिनिमम लोकल कॉन्टैक्ट: एप से खोज रहे रास्ते, राशन के लिए दुकानों में सेंध आतंकी मिनिमम सिविल कॉन्टैक्ट रख रहे हैं। राशन के लिए दुकानों में सेंध जैसे हथकंडे अपना रहे हैं। जंगल में लगातार लोकेशन बदलते रहते हैं। पर्वतारोहियों के लिए बने एप से जंगल में रास्ते खोजते हैं। नजर में आने से बचने को दो-चार आतंकी ही साथ चलते हैं।

कम्युनिकेशन: आकाओं से बात करने को चीनी उपकरण से एनक्रिप्टेड डेटा भेज रहे सीमा पार आकाओं या आपस में कम्युनिकेशन के लिए आतंकी चीनी उपकरणों का सहारा ले रहे हैं। ये अल्ट्रा फ्रीक्वेंसी पर काम करते हैं। आतंकियों के पास ​मिले इसके एडवांस वर्जन में डेटा छोटे बंडल में जाता है। इनका एनक्रिप्शन तोड़ना चुनौती रहता है।

तैयारी: पाकिस्तानी सेना से कमांडो जैसी ट्रेनिंग, गुरिल्ला फाइटिंग का भी अनुभव जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयब्बा के आतंकियों को पाक सेना की कमांडो फोर्स एसएसजी के पूर्व अफसर ट्रेनिंग देते हैं। कई अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध कर चुके हैं। इस बार गुरिल्ला युद्ध में ट्रेंड कई आतंकियों ने घुसपैठ की है।

हथियार: अमेरिकी सेना वाली असॉल्ट राइफल चला रहे, ड्रोन से भी सप्लाई कुछ समय पहले तक आतंकी एके राइफल रखते थे। अब उन्हें तालिबान से अमेरिकी फौज वाली एम-4 कार्बाइन असॉल्ट राइफलें मिल चुकी हैं। नाइट विजन, रॉकेट लॉन्चर और अन्य आधुनिक हथियार भी हैं। ड्रोन से भी सीमा पार से हथियार पहुंच रहे हैं।

सुरक्षा बलों की बड़ी समस्या: ओवरग्राउंड वर्कर्स की धरपकड़ के साथ नेटवर्क टूटा धारा 370 हटने के बाद आतंकियों के मददगार बड़े पैमाने पर पकड़े गए थे। पुलिस की काउंटर इंसर्जेंसी ब्रांच, आईबी, मि​लिट्री इंटेलिजेंस जैसी एजेंसियों में समन्वय के अभाव में एक–दूसरे के मुखबिर पकड़ लिए। इससे ह्यूमन इंटेलिजेंस नेटवर्क खत्म हो गया। इसी बीच, टेक्निकल सर्विलांस से आतंकियों की लोकेशन मिलने लगी। 2020-21 में इससे 400 से ज्यादा आतंकी मारे गए। फिर ह्यूमन इंटेलिजेंस को किसी ने खास तवज्जो नहीं दी।

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