सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश में साफ किया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ी सामग्री डाऊनलोड करना और उसे अपने पास रखना अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में मद्रास हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया है।
हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज केस यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि उसने चाइल्ड पोर्न सिर्फ अपने पास रखा। उसे फॉरवर्ड नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि वह पॉक्सो एक्ट में बदलाव कर चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह ‘चाइल्ड सेक्सुअली एब्युजिव एंड एक्सप्लॉयटेटिव मैटेरियल’ लिखने के लिए अध्यादेश लेकर आए।
पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 15 (1) के तहत अपराध माना जाएगा
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि बच्चों के साथ यौन अपराध से जुड़े वीडियो को सिर्फ डाउनलोड करना/ देखना / उसे अपने पास इलेक्ट्रॉनिक गजेट में रखना भी अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 15 (1) के तहत अपराध माना जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि भले ही किसी व्यक्ति का मकसद ऐसे वीडियो को पब्लिश करना या फिर किसी दूसरे भेजने का न हो, फिर भी ये पॉक्सो एक्ट के तहत यह अपराध माना जाएगा। यही नहीं, शीर्ष अदालत ने सभी न्यायालयों से ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल न करने का भी निर्देश दिया है।
मद्रास हाई कोर्ट का आदेश रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द किया जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफी देखना, डाउनलोड करना अपराध नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बाल पोर्नोग्राफी देखना, डाउनलोड करना पॉक्सो और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध माना जाएगा। कोर्ट ने बाल पोर्नोग्राफी और उसके कानूनी परिणामों के मुद्दे पर दिशा निर्देश जारी किए हैं।